तेरे मेरे बीच यह अँधेरा कैसा आया,
अब मालूम हुआ के है यह रात का साया,
काश न होते यह दिन ना ऐ रात,
सिर्फ देखा करते तुम्हे दिन और रात,
कुद्रथ कि है यह चाहत के तद्पें हम,
हो चाहत कि आरजू,
तुमसे मिलने के पहले
तनहाइयों से नहीं हम महफिल से डरते हैं,
दुनिया से नहीं हम खुद से डरते हैं,
बहूत कुछ खोया है हमने,
न जाने क्यों तुझे खोने से डरते हैं..
यह दूरी कितनी है अजीब,
दूर रहकर भी लगते हो करीब,
दूर न होना कभी,
कि दिल ना रह पायेगा तुम बिन
बहुत दूर हो मगर हर पल साथ रहते हो,
आंखों मै नहीं, दिल के पास रहते हो,
बस इतना बता दो हमें,
क्या तुम भी हमें इतना याद करते हो?
तुमसे दूर रहकर
तनहा रहे हम
तुम्हारी याद चली आई
सोचा था अब चैन मिले
लेकिन अब मालूम पड़ा
तुम्हारी याद से तन्हाई ही अचछी
आज फिर एहसास दिलाया आपने,
दूर रहते हुए भी अपना बनाया आपने,
कभी भूल नही पाएंगे हम आपको,
क्यों कि याद रखना भी तो सिखाया आपने
आंखो के किनारे भीगे नहीं
तो वो समझते हैं के हम रोए नहीं
पूछते हैं कल सपने में किसको देखा
वो क्या जाने के हम एक अरसे से सोए नहीं
No comments:
Post a Comment